मेरे दिल को कह के संग चले जाते हो
मेरी आँख में क्या बारिशें नहीं देखीं ?
घटाओं के हसीं मंजर अजीज हैं तुमको
बर्क की क़ातिलाना साजिशें नहीं देखीं ?
ग़मों को देखा बेशुमार हर तरफ तुमने
ख़ुशी को तौलती पैमाईशें नहीं देखीं ?
तुम्हें नफ़रत है मुझसे मानता हूँ लेकिन
प्यार बरसाने की गुंजाइशें नहीं देखीं ?
जगा रही है लहर इक छोटी साहिल को
खरामा छू के करती काविशें नहीं देखीं ?
(16.06.1989)
मेरी आँख में क्या बारिशें नहीं देखीं ?
घटाओं के हसीं मंजर अजीज हैं तुमको
बर्क की क़ातिलाना साजिशें नहीं देखीं ?
सुबह से शाम तलक ख़्वाब ही देखे तुमने
हकीक़त बनने वाली ख्वाहिशें नहीं देखीं ?ग़मों को देखा बेशुमार हर तरफ तुमने
ख़ुशी को तौलती पैमाईशें नहीं देखीं ?
तुम्हें नफ़रत है मुझसे मानता हूँ लेकिन
प्यार बरसाने की गुंजाइशें नहीं देखीं ?
जगा रही है लहर इक छोटी साहिल को
खरामा छू के करती काविशें नहीं देखीं ?
(16.06.1989)
beautiful shayri....so very happy to see you sharing your talent....keep posting
ReplyDeleteपुराने दिनों(८७-९०) में किसी मुलाक़ात की याद नहीं. आप किन दिनों थे नैनीताल?
ReplyDeleteबहुत अच्छी नज्मे है. शुक्रिया.
सुषमा जी, मैं १९८९ से १९९२ के दौरान डी एस बी में था. हाँ कुछ आप के ब्लॉग से, कुछ फेसबुक पर ही पहचान हुई ... आपका आभार सराहने के लिए..
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