बड़ी उम्मीदों से चराग एक जलाया है
कम से कम आज की रात इसे जलने दोरात आयी है जैसे, चली भी जाएगी
राहे-गर्दिश पे सितारों को यूँ ही चलने दो
गर पीते रहे यूँ ही तो घुटते जाओगे
अश्क दो-चार तो आँखों से अपनी ढलने दो
मिलेगा क्या गिरा के बार-बार मुझे
ठोकर एक ही काफी है, अब संभलने दो
रहम मौजों पे खाओ, बाँध थामने वालो
उन्हें साहिल की तुम नज़र में पलने दो
(16.06.1989)
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