Monday, 11 April 2011

इल्तिजा

 बड़ी उम्मीदों से चराग एक जलाया है 
 कम से कम आज की रात इसे जलने दो

 रात आयी है जैसे, चली भी जाएगी
 राहे-गर्दिश पे सितारों को यूँ ही चलने दो

 गर पीते रहे यूँ ही तो घुटते जाओगे
 अश्क दो-चार तो आँखों से अपनी ढलने दो

 मिलेगा क्या गिरा के बार-बार मुझे
 ठोकर एक ही काफी है, अब संभलने दो

 रहम मौजों पे खाओ, बाँध थामने वालो
 उन्हें साहिल की तुम नज़र  में पलने दो

(16.06.1989)

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