दिए की लौ में भी रोशनी तभी तक है
जब तलक जलती रहे ख़ुदी उसकी
उसका वजूद एक एहसास सा है उसके लिए
कभी ख़ामोश फ़िजाओं में या कभी तन्हाई में
वो लौ जो तड़पती है, चटखती है, हरपल
वो रोशनी याद रखो, देती नहीं अंधियारों में
चुपचाप जल कर ही मिट पाती है रात की स्याही
कभी ख़ामोश फ़िजाओं में या कभी तन्हाई में
जब तलक जलती रहे ख़ुदी उसकी
उसका वजूद एक एहसास सा है उसके लिए
कभी ख़ामोश फ़िजाओं में या कभी तन्हाई में
वो लौ जो तड़पती है, चटखती है, हरपल
वो रोशनी याद रखो, देती नहीं अंधियारों में
चुपचाप जल कर ही मिट पाती है रात की स्याही
कभी ख़ामोश फ़िजाओं में या कभी तन्हाई में
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