Sunday 17 April 2011

सुबह तो कल फिर आयेगी

 सूरज के छिप जाने पर भी
 संध्या के घिर आने पर भी
 घोर तिमिर गहराने पर भी
 मत रुकना, तू चलते रहना, सुबह तो कल फिर आयेगी

 एक कुसुम मुरझाये अगर तो कली हजारों  खिलती हैं
 एक निराशा के दामन में लाख उम्मीदें पलती हैं
 एक ज़रा सी बाधा आयी और रूक गए कदम तुम्हारे
 किसी सहारे की आशा में, तुमने इतने नाम पुकारे
 रस्ते में रुक जाने वाले
 मुश्किल से घबराने वाले
 मंजिल न चुन पाने वाले
 एक बार फिर कोशिश कर ले, मंजिल मिल ही जायेगी

 मत सोचो कि साथ तुम्हारे, कोई सफ़र में चला नहीं
 मत सोचो कि दीप तुम्हारे लिए डगर में जला नहीं
 पथ में कांटे जहर भरे यदि बिछे हैं तो मुस्काता जा
 अंधियारी राहों में आशाओं के दिए जलाता जा
 क्रम सांसों का जारी जब तक
 दम पैरों में बाकी जब तक
 तम रजनी का बाकी जब तक
 तब तक चलते रहना, खुद ही राह निकलती जायेगी

मत रुकना, तू चलते रहना, सुबह तो कल फिर आयेगी

(1998)

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