Wednesday, 27 April 2011

कब तलक


कब तलक बारूद-बम, बन्दूक-गोली, कब तलक
कब तलक रोती हुई ये ईद-होली, कब तलक
कब तलक पाजेब टूटी, चुप ठिठोली, कब तलक
कब तलक ये चाक-चिलमन, राख डोली, कब तलक

मंदिरों में हिचकियों का शोर यूँही, कब तलक
मस्जिदों में सिसकियों का जोर, यूँही कब तलक
खून में लिपटी उठेंगीं भोर यूँही, कब तलक
मुर्दा चेहरा  शाम होंगी और यूँही, कब तलक

कब तलक आँखों में होंगी मौत की परछाइयां
कब तलक सहमी रहेंगी गाँव में पनहारियाँ
कब तलक बुझती रहेंगी हुस्न की रानाइयां
कब तलक ठहरी रहेंगी इश्क की अंगड़ाइयां

दुल्हनों की मांग कब तक यूँही पोंछी जाएँगी
कब तलक बहता रहेगा आती नस्लों का लहू
कब तलक उठती हुई फसलों को रौंदा जायेगा
कब तलक तारी रहेगा जिस्मों-जां पे ये जुनूं

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