Tuesday, 26 April 2011

फ्लैट्स (नैनीताल)

जबरदस्त बारिश है...
कोहरा है कि बादल है....
अभी तो यहाँ से मंदिर भी नहीं दिखता...
न कैपिटोल का पता चलता है...
भीगता-भीगता सा मैं अपने फैलाव में सिमटा हुआ हूँ....

सर्दी का मौसम है...
चाईना पीक पर बर्फ है ...
उसकी ठंडक मुझ तक पहुँच रही है....
कोई-कोई इक्का-दुक्का सैलानी आता है...
ज्यादातर दुकानें गायब हैं...
चाय वालों के सिवा...
अब तो तिब्बतियों के बच्चे भी फुटबाल नहीं खेल रहे....
अजब सिहरन है...

हाँ, अब स्कूल, कॉलेज खुल गए हैं...
ठण्ड तो है...
पर घूमने लगे है बच्चे, बुजुर्ग, जवान....
और बाहर से आये जोड़े भी..
सज गयी हैं दुकानें ....
मैच भी हो रहे हैं...
अब मुझे अच्छा लग रहा है....
भाग रहे हैं लडके मुझ पर...

धूप खिली हुई है....
इतनी भीड़!!!!!
गलियारों में धक्कम-धक्का ....
नैनीताल के बाशिंदे बच-बच कर निकल रहे हैं...
दुकानें अब चीख रही है....
मोमबत्तियों तक के सुर निकल आये हैं...
अच्छा....!!! सीजन है?
तो स्वागत है......... सबका...
लेकिन मेरी छाती पर ये काले-काले टायर !!!
मुझे कुचल रहे हैं....
कुछ देखने नहीं देते...
मैं भी तुमसे मिलना चाहता हूँ....
मेरी भी नैनीताल में एक पहचान है......
यहाँ का बचपन मुझी पर दौड़ कर जवान होता है.....

मैं फ्लैट्स हूँ......... पार्किंग लाट नहीं हूँ.....
मुझे बख्शो ....

...
...

चल कर क्यूँ नहीं आते मुझ तक ....??


(26.04.2011)

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