Wednesday, 27 April 2011

मत बात करो सपनों की तुम



मत बात करो सपनों की तुम
क्या दुनिया में कुछ और नहीं

ये स्वप्न सत्य से दूर कहीं
मन को भटकाया करते हैं
पूरी न कभी जो हो सकती
वो आस जगाया करते हैं
गर इन सपनों के हो बैठे
गर इन सपनों में खो बैठे
तो नयन-नीर के सिवा कहीं मिल सकता तुमको ठौर नहीं

जो स्वप्न देखने हों तुमको
तो उठो नवल-निर्माण करो
रीती आँखों में आंसू भर
मानवता को जलदान करो
जिस घड़ी मनुज मुस्काए कहीं
समझो स्वप्नों का नगर वहीँ
वर्ना समस्त स्रष्टि भर में स्वप्निल राहों का छोर नहीं

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