Wednesday, 20 April 2011

तो अच्छा था

 पहुँच तो जाऊँगा मंजिल पे अपनी यूँ भी मैं लेकिन
 सफ़र में साथ हो जाता तुम्हारा भी, तो अच्छा था

 समंदर में जो कश्ती डूबी थी टकरा के तूफां से
 उसे इक बार मिल जाता किनारा भी, तो अच्छा था

 खुदा मेरे कोई ज़न्नत तो तुझ से थी नहीं मांगी
 अरे अपना जो चल जाता गुजारा भी, तो अच्छा था

 कहीं  आँखे  न  पथरा  जाएँ  तेरी  इंतजारी  में
 इधर इक बार हो जाता इशारा भी, तो अच्छा था

 खड़ा साहिल पे साहिल सोचता है देख कर लहरें
 मुझे तिनके का मिल जाता सहारा भी, तो अच्छा था

(30.01.91)

1 comment:

  1. khayaal to behtareen hai shayar saheb, hakiqat ban pata to acha tha...
    good one,keep posting!!!!!!!!!

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