पहुँच तो जाऊँगा मंजिल पे अपनी यूँ भी मैं लेकिन
सफ़र में साथ हो जाता तुम्हारा भी, तो अच्छा था
समंदर में जो कश्ती डूबी थी टकरा के तूफां से
उसे इक बार मिल जाता किनारा भी, तो अच्छा था
खुदा मेरे कोई ज़न्नत तो तुझ से थी नहीं मांगी
अरे अपना जो चल जाता गुजारा भी, तो अच्छा था
कहीं आँखे न पथरा जाएँ तेरी इंतजारी में
इधर इक बार हो जाता इशारा भी, तो अच्छा था
खड़ा साहिल पे साहिल सोचता है देख कर लहरें
मुझे तिनके का मिल जाता सहारा भी, तो अच्छा था
(30.01.91)
सफ़र में साथ हो जाता तुम्हारा भी, तो अच्छा था
समंदर में जो कश्ती डूबी थी टकरा के तूफां से
उसे इक बार मिल जाता किनारा भी, तो अच्छा था
खुदा मेरे कोई ज़न्नत तो तुझ से थी नहीं मांगी
अरे अपना जो चल जाता गुजारा भी, तो अच्छा था
कहीं आँखे न पथरा जाएँ तेरी इंतजारी में
इधर इक बार हो जाता इशारा भी, तो अच्छा था
खड़ा साहिल पे साहिल सोचता है देख कर लहरें
मुझे तिनके का मिल जाता सहारा भी, तो अच्छा था
(30.01.91)
khayaal to behtareen hai shayar saheb, hakiqat ban pata to acha tha...
ReplyDeletegood one,keep posting!!!!!!!!!