कहूं क्या, कूचा-ए-दिल में ये किससे कौन मिलता है
मेरा ही साया, मेरे ही तसव्वुर से मुक़ाबिल है
रायगाँ वक़्त क्या करना भला माज़ी के किस्सों में
न अब सुनने से कुछ होगा, न कुछ कहने से हासिल है
चलो अच्छा हुआ कि हम चराग़ों को बुझा आये
ये अब जाना, नहीं ये घर मेरा, जलने के क़ाबिल है
न कश्ती अब उतारो तुम ख़यालों के समंदर में
न ये कश्ती वो कश्ती है, न ये साहिल वो साहिल है
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कूचा-ए-दिल - दिल की गली
तसव्वुर - कल्पना
रायगाँ - व्यर्थ
माज़ी - बीता हुआ कल
कहूं क्या, कूचा-ए-दिल में ये किससे कौन मिलता है
ReplyDeleteमेरा ही साया, मेरे ही तसव्वुर से मुक़ाबिल है ..... bohot bohot Khoobsoorat !!