Wednesday, 13 April 2011

भूल गया हूँ

खोया हुआ हूँ ऐसे मैं अपनी ख़ुदी  में  
मैं हाथ मिलाने का अदब भूल गया हूँ 

फिर मुझको कोई नन्हा सा बच्चा बना दे  
मैं दिल की मुहब्बत की तलब भूल गया हूँ

तपते हुए नगमों को गाता था कभी मैं
फ़िलहाल तो अपने वो लब भूल गया हूँ

हिन्दू हूँ किसी रोज़ तो मुस्लिम हूँ किसी शब
इन्सां मगर होने का सबब भूल गया हूँ

दौलत की तलब है, मुझे इशरत की हवस है
सरमाये की इस होड़ में रब भूल गया हूँ

भूलेंगें न तुमको कभी वादा तो किया था
उलझन में गमे-ज़ीस्त की सब भूल गया हूँ  
कद मेरा भी ऊंचा है इस शहर में यारो
यहाँ आके बैसाखी का परब भूल गया हूँ

2 comments:

  1. This is damn so good....feel real proud that you are my friend...

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  2. Hindu hoon kisi roz to muslim hoon kisi shab
    insaan magar hone ka sabab bhool gaya hoon .
    very meaningful !!

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