झूम कर उठती हुई लपटों का मंजर देखना
दोस्त मेरे अब की बारिश में मेरा घर देखना
क्या पता किस ठौर, किस रस्ते में मंजिल खो गयी
अब पड़ेगा चक्रव्यूहों से गुजर कर देखना
आदमियत ने शक़ल बदली है इस अंदाज से
हर कोई अब चाहता है रूख बदल कर देखना
मुझको ये मालूम तो है वक़्त नामाकूल है
चाहता हूँ वक़्त से एक बार लड़कर देखना
1996
दोस्त मेरे अब की बारिश में मेरा घर देखना
क्या पता किस ठौर, किस रस्ते में मंजिल खो गयी
अब पड़ेगा चक्रव्यूहों से गुजर कर देखना
आदमियत ने शक़ल बदली है इस अंदाज से
हर कोई अब चाहता है रूख बदल कर देखना
मुझको ये मालूम तो है वक़्त नामाकूल है
चाहता हूँ वक़्त से एक बार लड़कर देखना
1996
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