Friday, 22 April 2011

दोस्त मेरे अब की बारिश में मेरा घर देखना

 झूम कर उठती हुई लपटों का मंजर देखना
 दोस्त मेरे अब की बारिश में मेरा घर देखना

 क्या पता किस ठौर, किस रस्ते में मंजिल खो गयी
 अब पड़ेगा चक्रव्यूहों से गुजर कर देखना

 आदमियत ने शक़ल बदली है इस अंदाज से
 हर कोई अब चाहता है रूख बदल कर देखना

 मुझको ये मालूम तो है वक़्त नामाकूल है
 चाहता हूँ वक़्त से एक बार लड़कर देखना

1996

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