हर उम्मीद शक्ल ले ये ज़रूरी तो नहीं है
हर ताल्लुक़ बन जाये ये ज़रूरी तो नहीं है
कुछ पैगाम रह जाते हैं क़ासिद के ही क़रीब
हर पयाम पहुँच जाये ये ज़रूरी तो नहीं है
कुछ बात खुल के हो नहीं पाई जो गए रोज़
वो आज हो ही जाये ये ज़रूरी तो नहीं है
जो सिलसिला हसीन बन तो सकता था
वो आज जुड़ ही जाये ये ज़रूरी तो नहीं है
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