Tuesday, 26 April 2011

बस यूँ ही

 जैसे क़दमों के हाथ में मेरा मुकद्दर हो
 उलझ रहा था फ़ासलों के साथ, बस यूँ ही

 न कोई रास्ता, मंजिल और न कोई चिराग़ 
 भटक रहा था काफ़िलों  के साथ, बस यूँ ही

(03.07.2000)

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