बड़ी ही सरकश है फ़ितरत उम्र की मौज़ों की,
दौरे-ग़र्दिश में कुछ कहने की सतवत मना है,
यहाँ वो आयें जिनको हो तलाशे-ख़ामोशी,
मेरी रूहे-शिकश्तां को बड़ा ख़ौफे-सदा है
- पुष्पेन्द्र वीर साहिल (Pushpendra Vir Sahil)
Wednesday, 27 April 2011
बस जरा सी बात पर इतना फ़साना हो गया
आज हर सूं शोर है कि मैं दीवाना हो गया
बस जरा सी बात पर इतना फ़साना हो गया
इस शहर में दिल मेरा लगता नहीं हरगिज मगर
जा नहीं सकता कहीं रिश्ता पुराना हो गया
वाह!
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