धीरे से आ, आहट न होने पाए कोई
जग जाये न कहीं, दर्दे-जिग़र सोता है
न चुभती बात करो, आज न हो, कल हो भले
ऐसे नश्तरों का दर्द, मगर होता है
जग जाये न कहीं, दर्दे-जिग़र सोता है
न चुभती बात करो, आज न हो, कल हो भले
ऐसे नश्तरों का दर्द, मगर होता है
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