मुझको तो चलना है मैं तय कर चुका
अब नहीं बस में किसी के रोकना है
और कितनी देर का बाकी है रस्ता
ये नहीं मंजिल से पहले सोचना है
राह में बाकी हैं कितनी और मुश्किल
सामना कर के ही अब तो देखना है
अपनी असफलता के कारण खुद में ढूंढो
व्यर्थ औरों में कमी को खोजना है
मृत्यु-मंथन से सुलभ जीवन-सुधा है
व्यर्थ यारों मृत्यु की आलोचना है
जब समय आएगा तब सरसेगी धरती
खाली कब जाता धरा को सींचना है
दोस्त तेरी आँख का हर एक आंसू
मुझको इस दिल की तहों में सोखना है
गलतियों का मुझको कोई ग़म नहीं
गलतियों से ही मुझे तो सीखना है
क्योंकि मैं इंसान हूँ, पत्थर नहीं
चोट खाता हूँ तो लाजिम चीखना है
इस धरा का रंग इतना लाल क्यूँ है
अपने पुरखों से हमें ये पूछना है
ज़िंदगी तो झूठ है अब मरके हमको
कम-से-कम एक बार तो सच बोलना है(22.03.1992)
every line is so meaninful...no words...
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