Wednesday 27 April 2011

मुझको तो चलना है


मुझको तो चलना है मैं तय कर चुका
अब नहीं बस में किसी के रोकना है

और कितनी देर का बाकी है रस्ता
ये नहीं मंजिल से पहले सोचना है

राह में बाकी हैं कितनी और मुश्किल
सामना कर के ही अब तो देखना है

अपनी असफलता के कारण खुद में ढूंढो
व्यर्थ औरों में कमी को खोजना है

मृत्यु-मंथन से सुलभ जीवन-सुधा है
व्यर्थ यारों मृत्यु की आलोचना है

जब समय आएगा तब सरसेगी धरती
खाली कब जाता धरा को सींचना है

दोस्त तेरी आँख का हर एक आंसू
मुझको इस दिल की तहों में सोखना है

गलतियों का मुझको कोई ग़म नहीं
गलतियों से ही मुझे तो सीखना है

क्योंकि मैं इंसान हूँ,  पत्थर नहीं
चोट खाता हूँ तो लाजिम चीखना है

इस धरा का रंग इतना लाल क्यूँ है
अपने पुरखों से हमें ये पूछना है

ज़िंदगी तो झूठ है अब मरके हमको
कम-से-कम एक बार तो सच बोलना है

(22.03.1992)

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