Friday 8 April 2011

वसंत

 ये जीवन पतझड़ का मौसम, अब वसंत आ जाने दो

 प्रियतम तेरे नेह-घटक बिन
 अँखियाँ अश्रु की पनिहारिन
 बिन तेरे आँचल में सिमटी
 क्वांरी पीड़ा बनी अभागिन
 चूनर कुम-कुम हो जाने दो, उम्र सुहागिन हो जाने दो
 ये जीवन पतझड़ का मौसम, अब वसंत आ जाने दो

 विरह-निशा आँखों में बीती
 आशा की मदिरा भी रीती
 तुमको सौ-सौ बार पुकारा
 फिर भी सूनी मन की वीथी
 अधर-अधर से मिल जाने दो, प्रेम-सुमन खिल जाने दो
 ये जीवन पतझड़ का मौसम, अब वसंत आ जाने दो

(15.02.1997)

1 comment: